नक्सलवादी पति पत्नी ने जिलाधिकारी गोतमारे व पुलिस अधीक्षक पिंगले के समक्ष किया आत्मसमर्पण 19 लाख का था ईनाम नक्सलवादी विलय सप्ताह की पार्श्वभूमीपर गोंदिया पुलिस दल की सफलता

बुलंद गोंदिया। गोंदिया जिले में पुलिस अधीक्षक निखिल पिंगले, अपर पुलिस अधीक्षक अशोक बनकर के मार्गदर्शन में नक्सलवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने वह उनके आंदोलन को खत्म करने के लिए नक्सल विरोधी अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं की जन जागृति कर ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों में सजकता लाई जा रही है व नक्सलवादियों द्वारा दिए गए धोखे वह प्रलोभन के शिकार होकर नक्सलवादी संगठन में जो शामिल हुए हैं वह हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का आवाहन किया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत जिलाधिकारी चिन्मय गोतमारे, पुलिस अधीक्षक निखिल पिंगले के समक्ष देवरी दलम के कमांडर लच्छू उर्फ ​​लच्छन उर्फ ​​सुकराम सोमारू कुमेटी उम्र 39 वर्ष वह उसकी पत्नी तथा दलम की सदस्य कमला ऊर्फ गौरी ऊर्फ मेहत्री सामसांय हलामी उम्र 36 वर्ष द्वारा माओवादी विलय सप्ताह की पृष्ठभूमि में आत्म समर्पण किया इन दोनों नक्सलवादियों पर 19 लख रुपए का इनाम था।

गौरतलब है की देश में नक्सलवादी आंदोलन पर प्रतिबंध लगे वह अधिक से अधिक नक्सलवादी आत्म समर्पण कर विकास की मुख्य धारा में शामिल हो तथा उनका सामाजिक आर्थिक पुनर्वासन हेतु इस उद्देश्य से महाराष्ट्र शासन द्वारा नक्सली आत्म समर्पण अभियान चलाया जा रहा है तथा गोंदिया जिले में जिला पुलिस अधीक्षक निखिल पिंगले ,अपर पुलिस अधीक्षक अशोक बनकर के मार्गदर्शन में नक्सलवादियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है साथ ही शासन की आत्म समर्पण योजना का प्रचार प्रसार के अंतर्गत 19 लाख इनामी दो नक्सलियों दंपति द्वारा आत्म समर्पण किया।

आत्मसमर्पित नक्सलवादी के बारे में संक्षिप्त जानकारी:–
1) देवरी दलम कमांडर लच्छू उर्फ ​​लच्छन उर्फ ​​सुकराम सोमारू कुमेटी 1999 से माओवादी संगठन में भर्ती हुआ था जिसके बाद उसने अबुजमाड़ में प्रशिक्षण लिया और स्पेशल जोनल कमेटी के सदस्य शेखर उर्फ ​​सयन्ना के अंगरक्षक के रूप में काम किया। गोंदिया में केशकाल दलम, कोंडगांव दलम (छत्तीसगढ़), कोरची, खोब्रामेंढा (गढ़चिरौली) और देवारी दलम (महाराष्ट्र) में डिप्टी कमांडर के रूप में भी कार्य किया। नक्सली दलम में उनके काम को देखते हुए उन्हें देवरी दलम के कमांडर का पद दिया गया। उसके खिलाफ गोंदिया जिले में मुठभेड़ और आगजनी के कुल 6 मामले दर्ज हैं.

2) देवरी दल के सदस्यों के नाम – कमला उर्फ ​​गौरी उर्फ ​​महत्री समसे हलामी को वर्ष 2001 में खोब्रामेंढा दलम में भर्ती किया गया था और उसके बाद उन्हें प्रशिक्षण के लिए उत्तरी बस्तर और बालाघाट (म. प्रदेश) के जंगलों में भेजा गया था। अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने कोरची, खोब्रामेंढा, चारभट्टी दलम, प्लाटून-ए (गढ़चिरौली), गोंदिया में देवरी दलम में दलम सदस्य के रूप में काम किया है। उसके खिलाफ गोंदिया जिले में मारपीट, पुलिस पार्टी पर फायरिंग, आगजनी के कुल 8 मामले दर्ज हैं.

पति-पत्नी दोनों के समर्पण करने के महत्वपूर्ण कारण:-

1) निम्नलिखित कैडरों को नक्सली संगठन/आंदोलन का सटीक लक्ष्य नहीं पता है। भविष्य अंधकारमय दिखता है.
2) माओवादी संगठन के वरिष्ठ कैडर नक्सली आंदोलन के लिए धन/फंड इकट्ठा करने की बात करते हैं। लेकिन असल में वे उक्त पैसे का इस्तेमाल अपने लिए करते हैं.
3) सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कारण लोगों को माओवादियों को वह समर्थन नहीं मिल पा रहा है जो वे चाहते थे।
4) माओवादी नेता गरीब आदिवासी युवाओं का इस्तेमाल केवल अपने फायदे के लिए करते हैं।
5) दलम में रहते हुए विवाह करने पर भी वैवाहिक जीवन नहीं जिया जा सकता।
6) किसी भी समस्या में परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों की मदद नहीं की जा सकती।
7) दलम में रहने पर समय पर भोजन आदि न मिलना। वहां जीवन बहुत कठिन है. जब स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, तो उन पर ध्यानपूर्वक ध्यान नहीं दिया जाता है।
8) पुलिस बल द्वारा लगातार चलाये जा रहे नक्सल विरोधी अभियान के कारण जंगल का माहौल खतरनाक हो गया है. मुझे पुलिस से भी वैसा ही डर लगता है.
9) वरिष्ठ कैडर पुलिस मुखबिरी के संदेह में निर्दोष आदिवासियों/आम नागरिकों को मारने के लिए कहते हैं।
10) महाराष्ट्र सरकार की आत्मसमर्पण योजना से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया।

इसी तरह आत्मसमर्पण का मुख्य कारण:- कमला की तबीयत खराब होने के कारण उन्हें इलाज के लिए सूरत भेजा गया था। सूरत से लौटने के बाद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा था. वह दलम छोड़ने की सोच रही थी. इसलिए वह समय-समय पर अपने पति लच्छू से दलम छोड़ने के बारे में भी बात करती रहती थी। आख़िरकार दोनों ने दलम छोड़ने का फ़ैसला किया. दलम छोड़ने के बाद वह दोबारा नक्सली आंदोलन में शामिल नहीं होना चाहते थे. इसलिए वे लगातार समर्पण के संपर्क में थे. लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली. इसके बाद वह गोंदिया जिला पुलिस के संपर्क में आया और कहा कि उसने गोंदिया जिला पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है।

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